Page 182 - BEATS Secondary School
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कहािी
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जुबाि सिंभाल कर
जुबाि सिंभाल कर
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मन्ित साह, कक्षा 9 मन्ित साह, कक्षा 9
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सुबह जब मैं न श्त करने बैठी तो न श्ते की िेबल पर मम्मी, प प और आयफन भी बैठे हए थे। आज न श्ते
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सुबह जब मैं न श्त करने बैठी तो न श्ते की िेबल पर मम्मी, प प और आयफन भी बैठे हए थे। आज न श्ते
में आलू के पर ठे जो बन रहे थे। पर ठों की खुशबू रसोई से ब हर तक आ रही थी। पर ठों की खुशबू से मेरे ु
मुाँह से प नी िपक रह थ । पेि में अच नक से चूहे दौड़ने लगे। मैंने पर ठ लेने के शलए ह थ बढ़ य ही थ
में आलू के पर ठे जो बन रहे थे। पर ठों की खुशबू रसोई से ब हर तक आ रही थी। पर ठों की खुशबू से मेरे
कक तभी मुझे य द आय कक मुझे तल हआ ख न नहीां ख न है। प स में बैठी हई मेरी म ाँ मेरे शसर पर
ु
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ह थ फे र रही थी कक तभी मुझे जोर से गुस्स आय और मैंने प्लेि जमीन पर फ ें क दी, ‘यह क्य है? मैंने
मुाँह से प नी िपक रह थ । पेि में अच नक से चूहे दौड़ने लगे। मैंने पर ठ लेने के शलए ह थ बढ़ य ही थ
आपको कह थ न कक मुझे तल हआ ख न मत देन ?’ मैं म ाँ पर जोर से गचल्ल ई। ‘ह ाँ बेि , मुझे य द है
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कक तभी मुझे य द आय कक मुझे तल हआ ख न नहीां ख न है। प स में बैठी हई मेरी म ाँ मेरे शसर पर
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तुमने कह थ कक तुम्हें ब्रेड और अांडे च टहए, पर कफर मैंने सोच कक उससे तुम्ह री भूख शमिेगी नहीां।’ मैं ु
गुस्से में गचल्ल ते हए म ाँ से बोली, ‘मेरी भूख शमिेगी य नहीां यह सोचने की आपको क्य जरूरत थी!’ मेरी
ु
ह थ फे र रही थी कक तभी मुझे जोर से गुस्स आय और मैंने प्लेि जमीन पर फ ें क दी, ‘यह क्य है? मैंने
ब तें सुनकर प स ही में बैठे पपत जी ने मुझे गुस्से से कह , ‘जुब न सांभ लकर अपनी म ाँ से ब त करो!’ मैंने
देख पपत जी क चेहर क्रोध से ल ल हो गय थ । मैं बबन क ु छ बोले अपने कमरे में चली गई और अपने
आपको कह थ न कक मुझे तल हआ ख न मत देन ?’ मैं म ाँ पर जोर से गचल्ल ई। ‘ह ाँ बेि , मुझे य द है
ु
बबस्तर पर बैठकर मैंने सोच कक जो व्यवह र मैंने अपनी म ाँ के स थ ककय क्य मुझे वैस करन च टहए
तुमने कह थ कक तुम्हें ब्रेड और अांडे च टहए, पर कफर मैंने सोच कक उससे तुम्ह री भूख शमिेगी नहीां।’ मैं
थ । मैंने सोच कक मुझे उनसे ज कर म फी म ाँगनी च टहए। मैं उनके प स गई। वह मेरी मनपसांद शमठ ई
बन रही थी। ‘मुझे म फ कर दो म ाँ’, मैं प्य र से बोली। मुझे देखकर म ाँ की आांखें खुली की खुली रह गई।
गुस्से में गचल्ल ते हए म ाँ से बोली, ‘मेरी भूख शमिेगी य नहीां यह सोचने की आपको क्य जरूरत थी!’ मेरी
ु
उनकी आाँखों से खुशी क आाँसू गगर पड़ । मैंने इससे पहले कभी उनसे ककसी ब त के शलए म फी नहीां म ाँगी।
ब तें सुनकर प स ही में बैठे पपत जी ने मुझे गुस्से से कह , ‘जुब न सांभ लकर अपनी म ाँ से ब त करो!’ मैंने
उन्होंने मुझे ऐसे गले लग य जैसे कक उन्होंने सब भुल कर मुझे म फ कर टदय हो। कफर ख न ख कर हम
सो गए। अभी सुबह मेरे स्क ू ल में पीिीएम मीटिांग थी। पपत जी ने मुझे बोल कक उनको तो बहत जरूरी
ु
देख पपत जी क चेहर क्रोध से ल ल हो गय थ । मैं बबन क ु छ बोले अपने कमरे में चली गई और अपने
क म से ब हर ज न होग इसशलए कह तुम्ह री म ाँ तुम्ह रे स थ चली ज एाँगी। म ाँ क मेरे स्क ू ल में पीिीएम
में आने की ब त सुनकर मेर चेहर पसीने से तरबतर हो गय । मैं अपने पसीने को पोंछते हए म ाँ से बोली,
बबस्तर पर बैठकर मैंने सोच कक जो व्यवह र मैंने अपनी म ाँ के स थ ककय क्य मुझे वैस करन च टहए
ु
‘तुम प ाँच शमनि रुको। मैं अभी आई।’ मैं मुल यम सोफ़े पर बैठी टिकिॉक टिकिॉक करती घड़ी को देखने
थ । मैंने सोच कक मुझे उनसे ज कर म फी म ाँगनी च टहए। मैं उनके प स गई। वह मेरी मनपसांद शमठ ई
लगी। जब मैं और म ाँ अध्य पपक के कमरे के ब हर बैठे तब मेरे पेि में नततशलय ाँ सी उड़ रही थीां। जब हम
अपनी अांग्रेजी की अध्य पपक से शमलने वह ाँ पहाँचे तो म ाँ ने अांग्रेजी की अध्य पपक को टहांदी में ब त करने
ु
बन रही थी। ‘मुझे म फ कर दो म ाँ’, मैं प्य र से बोली। मुझे देखकर म ाँ की आांखें खुली की खुली रह गई।
के शलए कह । यह सुनकर मैंने अपनी गदफन नीचे झुक ली। पीिीएम के ब द घर ज ते समय न म ाँ ने
उनकी आाँखों से खुशी क आाँसू गगर पड़ । मैंने इससे पहले कभी उनसे ककसी ब त के शलए म फी नहीां म ाँगी।
मुझसे ब त की और न मैंने उनसे। मेरे भीतर म ाँ के प्रनत बहत गुस्स भर हआ थ । घर पर मैंने म ाँ से
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कह , ‘म ाँ आपको क्य जरूरत थी मेरे स थ आने की? पढ़ ई आपने की नहीां, अनपढ़ बैठे हो। घर बैठकर
उन्होंने मुझे ऐसे गले लग य जैसे कक उन्होंने सब भुल कर मुझे म फ कर टदय हो। कफर ख न ख कर हम
अपने बबखरे हए ब ल सांभ लो, कपड़ों को इस्तरी करो, ख न बन ओ, आपके मेरे स थ आने की क्य जरूरत
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थी?’ म ाँ रोते हए अपने कमरे की तरफ चली गई और खखड़की की बगल में ज कर बैठ गई, जह ाँ उनको
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सो गए। अभी सुबह मेरे स्क ू ल में पीिीएम मीटिांग थी। पपत जी ने मुझे बोल कक उनको तो बहत जरूरी
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सुक ू न शमलत है। मुझे ब द में बहत बुर लग । मुझे महसूस हआ कक मुझे अपनी जुब न सांभ लनी च टहए
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क म से ब हर ज न होग इसशलए कह तुम्ह री म ाँ तुम्ह रे स थ चली ज एाँगी। म ाँ क मेरे स्क ू ल में पीिीएम
थी। मगर मेर गुरूर मुझे मेरी म ाँ की उद सी के स मने बहत बड़ लग । मैं म ाँ के प स म फी म ाँगने नहीां
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ज ऊां गी मगर मुझे अपनी जुब न सांभ ल कर ब त करनी च टहए थी।
में आने की ब त सुनकर मेर चेहर पसीने से तरबतर हो गय । मैं अपने पसीने को पोंछते हए म ाँ से बोली,
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‘तुम प ाँच शमनि रुको। मैं अभी आई।’ मैं मुल यम सोफ़े पर बैठी टिकिॉक टिकिॉक करती घड़ी को देखने
लगी। जब मैं और म ाँ अध्य पपक के कमरे के ब हर बैठे तब मेरे पेि में नततशलय ाँ सी उड़ रही थीां। जब हम
अपनी अांग्रेजी की अध्य पपक से शमलने वह ाँ पहाँचे तो म ाँ ने अांग्रेजी की अध्य पपक को टहांदी में ब त करने
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के शलए कह । यह सुनकर मैंने अपनी गदफन नीचे झुक ली। पीिीएम के ब द घर ज ते समय न म ाँ ने
मुझसे ब त की और न मैंने उनसे। मेरे भीतर म ाँ के प्रनत बहत गुस्स भर हआ थ । घर पर मैंने म ाँ से
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कह , ‘म ाँ आपको क्य जरूरत थी मेरे स थ आने की? पढ़ ई आपने की नहीां, अनपढ़ बैठे हो। घर बैठकर
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अपने बबखरे हए ब ल सांभ लो, कपड़ों को इस्तरी करो, ख न बन ओ, आपके मेरे स थ आने की क्य जरूरत
थी?’ म ाँ रोते हए अपने कमरे की तरफ चली गई और खखड़की की बगल में ज कर बैठ गई, जह ाँ उनको
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