Page 179 - BEATS Secondary School
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इमरो इिाम की कविता पूजा यादि की कविता तमन्िा राठौड़ की कविता हिषल अगरिाल की कविता
कक्षा 9 कक्षा 9 कक्षा 9 कक्षा 9
ढूाँढ़ती रही हाँ मैं कहते हैं लोग बचपन
ू
क्य खूब है न यह तन्ह ई बड़े होकर खो ज एग यह बचपन क्य है बचपन?
वो दोस्त, वो बचपन
जो एक ब तूनी इांस न के होठों पर भी त ल लग
बचपन की वो न द ननय ाँ, अठखेशलय ां और खेलन -क ू दन ?
छोिी-छोिी खुशशयों में हाँसन ,
दे,
शैत ननय ाँ दोस्त बन न ?
हमेश से खखलखखल ती फ ू ल सी मुस्क न को सुख रो देन चोि जो लगे
य द आएाँगे यही चहकते पल स्क ू ल ज न ?
दे कोई थे भैय , कोई थे च च
वो दोस्तों के स थ खेलन , मनमज़जफय ाँ करन पढ़ ई-शलख ई करन ?
एक हौंसले देने व ले की उम्मीद भी छीन ले हर कोई जैसे हो अपने
य द आएाँगे यही चहकते पल आखखर है क्य बचपन?
हमेश शसर ऊाँ च रखने व ले की भी नजरें झुक दे
प प से डरन पर म ाँ से वो लड़न
ू
यही है तन्ह ई आज मैं अपने अांत के इतने प स हाँ
करके च ल की कफर उलझन में पड़न
पर क्य च हती है यह तन्ह ई डर लगत है कक खो न ज एाँ लेककन कफर भी मैं सोचे ज रह हाँ
ू
न कोई गम थ न कोई डर थ
पीछ क्यों नहीां छोड़ती यह तन्ह ई बेकफक्री के ये पल आखखर है क्य ये बचपन
क्य ये दोस्तों की खोज में है बस खेल-खखलौनों की कफक्र थी आगे बढ़ने से लगत है मुझे डर ...
य ककसी न र अपने की खोज में है बचपन क हर पल होत है अनोख ज़जम्मेद री की ये च दर ओढ़ने से लगत है मुझे
ये तनह ई ... डर
... सोहम फरगड़े की कविता आददत्य ससिंह की कविता
लेककन बचपन के दूर ज ने के एहस स को
कक्षा 9 कक्षा 9
सांभ लन होग
ध्रुि फ़रासी की कविता बड़े होकर भी बचपन को सांभ लन होग
तिीशा की कविता
इस दुननय में लग रह है अब तो चलने तक में ददफ होत है
कक्षा 9
कक्षा 9 ...
कक हर कोई तन व में है च र-प ाँच गोशलय ाँ लेकर सोन पड़त है
लेककन जो तन व में नहीां है वह टदख त है मेर टदल अांदर ही अांदर रोत है
क्य कभी सोच है
बचपन आत है
और जो है मेर बेि
सोहम फरगड़े की कविता
आददत्य ससिंह की कविता
कफर चल ज त है
मृत्यु के ब द कह ाँ ज ओगे तुम?
वह छ ु प त है अब नहीां शमलने आत
कक्षा 9
कक्षा 9
क्य ज ओगे स्वगफ में?
मौज-मस्ती के वो टदन
... और बेिी ने भी कर टदय अनदेख
पूरी ज़जांदगी स थ रहते हैं
य हो ज ओगे धरती पर ही खत्म?
इस दुननय में लग रह है कोई नहीां समझेग ये ददफ जो है मेर
अब तो चलने तक में ददफ होत है
बुढ़ पे के समय कफर वही टदन तो य द आते हैं
कक हर कोई तन व में है ये बड़े सपने
च र-प ाँच गोशलय ाँ लेकर सोन पड़त है
डर है मुझे
क श! कोई लौि दे वही
\ लेककन जो तन व में नहीां है वह टदख त है सपने ही रह गए
मेर टदल अांदर ही अांदर रोत है
बचपन के टदन
क्य होग मेरे स थ
और जो है जेब में थे जो पैसे
मेर बेि
...
करेग क्य कोई मुझे भी य द
वो दव इय ाँ ले गईं
वह छ ु प त है
अब नहीां शमलने आत
... अब तो मेरी मुस्क न भी बत्तीसी के स थ चली गई
य बन कर रह ज ऊाँ गी मैं कोई फररय द
और बेिी ने भी कर टदय अनदेख
जीवन के इस चक्रव्यूह में जो आय है
ज़जांदगी में भी कोई सुख न शमल
कोई नहीां समझेग ये ददफ जो है मेर
वह कभी तो ज एग और ककस्मत ने कर टदय मुझको खोखल
ये बड़े सपने
... ...
सपने ही रह गए
जेब में थे जो पैसे
वो दव इय ाँ ले गईं
अब तो मेरी मुस्क न भी बत्तीसी के स थ चली गई
ज़जांदगी में भी कोई सुख न शमल
और ककस्मत ने कर टदय मुझको खोखल
...