Page 32 - BEATS: Secondary School Edition 2020-21
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शिक्ा बहुत जरूरी  होली है आज


          a poem by Khyatee Lath, MYP 3                               a poem by Aadi Thakkar,

                                                                      MYP 2

             शशक्ा होती ह बहुत ज़रूरी,
                        ै
             बबन शशक्ा सज़नदगी अधरी                                       होली आई होली आई!
                                ू
                                             ै
                   ै
                             ं
             बनते हं हम बेहतर इसान जब ममलती ह शशक्ा                      िागन क महीने में होली आई
                                                                            ु
                                                                                े
                                          ै
             सही गलत में अंतर करना ससखाती ह शशक्ा
             अगर न होती शशक्ा जीवन में तो,                               एक दूजे क घर जाकर मौज मनाओ
                                                                                 े
             न बनते इजीबनर्र, डरॉकिर, अिसर, वैज्ाबनक और प्ोिसर।          रग लगाकर ख़शी मनाओ
                    ं
                                                                                    ु
                                                                         ं
             अगर न होती शशक्ा जीवन में तो,
             कभी न बनता िलीिोन, बलब और हमारी इिरनेि की दुबनर्ा।          तवचा को रगों से बचाना हो
                                                ं
                          े
                                                                                 ं
             अगर न होती शशक्ा जीवन में,                                  तो उससे पहले तेल ज़रूर लगाओ
                                              ु
                       े
             अभी भी बैठ होते हम उन अँधेरी काली गिाओं में
             अगर न होती शशक्ा जीवन में तो,                                रूठ हुए दोसतों को फिरसे आज मनाओ
                                                                            े
                                                े
             कागज तो छोड़ो, दीवारों पर ही चचत्र बना रह होते               सबको बपचकारी और गुबबार से चभगाओ
                                                                                                े
                      ै
             शशक्ा ही ह जो हमें इस दुबनर्ा में,
                                                                          ु
             अच् से जीना ससखाएगी।                                        गझिर्ा और कचौरी सबको खखलाओ
                 े
                                         ै
             इससलए मैं कहती हँ: शशक्ा होती ह बहुत ज़रूरी,                 सबको रग लगा क ख़शशर्ाँ ही ख़शशर्ाँ मनाओ
                                                                                          ु
                                                                                                   ु
                                                                               ं
                                                                                       े
                 े
             इसक बबना हमारी सज़नदगी अधरी।
                                      ू
          होली का त्ोहार



          a poem by Tanush Aanand, MYP 2



                                                                               ु
                                                                                        ँ
                         ै
                                                                         ु
             होली का फदन ह मौज मसती का फदन,                       हँसी-ख़शी से बरी आतमाए डर जातीं,
                        ं
             इस मजेदार रग-र्द्ध को जीतना ह कफठन।                  परी दुबनर्ा जैसे एक ही सर में गाती।
                                                                                       ु
                                        ै
                                                                    ू
                           ु
             होली पर सब गझिर्ा, चाि-कचौरी खाते,                   हँसी–ख़शी की कहीं न कोई सीमा रहती,
                         ु
                                                                         ु
                                                                                            ै
                  ं
             और रगीले मौसम का आनंद उठाते।                         रगीन नदी की धार फदशाओ में ह बहती।
                                                                   ं
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