Page 113 - Secondary School BEATS
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ूँ
 पृथ्ी की          निःशब्द खेामैोशशया





 ु
 ु
 फसफसाहट


                            ैं
        पढ़िे मैें शजतिे शांत ह ये शब्द                         बस प्ेमै ही प्ेमै की बजे शहिाइया ूँ
                      ैं
                    े
        समैेटकर बैठ ह उतिे ही तूफाि                             अहसासों का यर्ार््थ मैें समैावेश हो जाए
        दबे हुए प्ार का एहसास हो या गछपी हुई मैजबूररया ूँ       और इस निःशब्द खेामैोशी को शब्दों का भेष नमैि जाए
                                                                                 ूँ
        असमैर््थता की अनभव्यगति हो या क्दि करती रुसवाइया   ूँ   निःशब्द खेामैोशशया
                                       ं
                                                                                    ैं
                                            ूँ
                          ैं
 े
 ैं
 दखेें ह मैैंिे पीसा क मैीिार भी  ऐसे मैें ही पिपती ह निःशब्द खेामैोशशया    पढ़िे मैें शजतिे शांत ह ये शब्द
 े
                                                                           े
                                                                              ैं
                 ैं
        कहते ह ह बदिाव अवश्ंभावी ह    ै                         समैेटकर बैठ ह उतिे ही तूफाि
               ैं
 और दूर से ह ही चीि की दीवार
 ै
        पर क्ा ये ददिों क ररश्तों पर भी हावी ह ै                दबे हुए प्ार का एहसास हो या गछपी हुई मैजबूररया ूँ
                         े
 ु
 ै
 कछ अजूबे दखेें ह कछ सुिे ह ैं
 े
 ु
        तवष िहीं आस बिो                                         असमैर््थता की अनभव्यगति हो या क्दि करती रुसवाइया  ूँ
                                                                                              ं
 यू ही िहीं तकसी िे चुिे ह ैं
 ूँ
                                                                                 ैं
        सहारा िा  सही तकसी का तो तवश्ास बिो                     ऐसे मैें ही पिपती ह निःशब्द खेामैोशशया
                                                                                                   ूँ
 े
 ैं
 दखेी ह कई इमैारतें बाहर भीतर से छ ू  कर
                                                                                       ं
                                                                       ैं
        नमैसाि बि जाए तुमै सब की याररया   ूँ                    कहते ह ह बदिाव अवश्भावी ह    ै
                                                                        ैं
 सबका शशल्प अिग तवचार अिग
                े
                                                                                े
                          े
        चहक उठ मैहक उठ निःशब्द खेामैोशशयां                      पर क्ा ये ददिों क ररश्तों पर भी हावी ह ै
 ब्ाज़ीि और निबटटी का भी स्च् ू
 ै
                ै
        जरूरत ह तो बस उि आूँखेों की                             तवष िहीं आस बिो
 दखेें ह मैॉस्ो क िाि तारे इिमैें दज्थ इततहास ह ै
 े
 े
 ैं
        जो भाषा समैझ सक उि भावों की                             सहारा िा  सही तकसी का तो तवश्ास बिो
                          े
 े
 ैं
 दखेें ह कई सुंदर भवि, बगीचे आदद आदद
        शजन्ह शब्दों की मैािा मैें तपरोया ि जा सक े             नमैसाि बि जाए तुमै सब की याररया  ूँ
             ें
 े
 े
 शसगगररया का उद्ाि, मैिबि्थ स्रियमै
                                                                                 े
                                                                        े
        िफ्जों की िहीं, तवजय हो जज़्बातों की                     चहक उठ मैहक उठ निःशब्द खेामैोशशयां
 ततब्बत का पठार आदद आदद  काश तक ऐसा समैा बंध जाए                जरूरत ह तो बस उि आूँखेों की
                                                                        ै
 तवद्ािय से सुंदर कोई भवि िहीं  हर कोई सबकी बात यू ही समैझ जाए  जो भाषा समैझ सक उि भावों की
                             ूँ
                                                                                 े
 उसक मैैदाि से बड़ा कोई पठार िहीं                               शजन्ह शब्दों की मैािा मैें तपरोया ि जा सक े
 े
                                                                    ें
 ैं
 े
 जहां गढ़ जाते ह अिगढ़ हीरे                                     िफ्जों की िहीं, तवजय हो जज़्बातों की
 ैं
 जहां तराशे जाते ह वो पत्थर शजिमैें संवेदिा ह ै                 काश तक ऐसा समैा बंध जाए
                                                                                    ूँ
 ृ
 परंपरा, संस्तत और तवश्ास का एक स्ाि                            हर कोई सबकी बात यू ही समैझ जाए
 तवद्ािय                                                        बस प्ेमै ही प्ेमै की बजे शहिाइया ूँ
                                                                अहसासों का यर्ार््थ मैें समैावेश हो जाए
 Chandan Kumar                                                  और इस निःशब्द खेामैोशी को शब्दों का भेष नमैि जाए
 Hindi Facilitator
                                                                Divya Jain
                                                                IBDP Biology Facilitator
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